किशनगंज: जनसुराज पार्टी द्वारा किशनगंज जिले के बहादुरगंज प्रखंड में बड़े जोरशोर से आयोजित की गई ‘बदलाव सभा’ उस समय विवादों में घिर गई जब सभा में जुटी भीड़ से जुड़ी एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। स्थानीय मीडिया और पत्रकारों की पड़ताल में खुलासा हुआ कि सभा में शामिल कई लोगों को यह तक नहीं पता था कि वे किस पार्टी की सभा में आए हैं और किस नेता को सुनने आए हैं।

भीड़ को नहीं मालूम था सभा का उद्देश्य
सभा में उपस्थित लोगों से जब संवाददाताओं ने सवाल पूछे, तो कई लोग साफ-साफ जवाब नहीं दे पाए। एक व्यक्ति ने कहा, “नेता आ रहे थे, देखने आ गए।” वहीं एक बुजुर्ग महिला ने चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा, “हमसे कहा गया था कि 500 रुपये देंगे और फोटो खींच लिया गया, लेकिन पैसा नहीं मिला।”
कई अन्य लोगों ने बताया कि उन्हें भोजन, पानी और आने-जाने की सुविधा देने की बात कहकर बुलाया गया था। कुछ तो ऐसे भी निकले जिन्हें यह भी नहीं पता था कि जनसुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर हैं।

‘बदलाव सभा’ या सिर्फ भीड़ प्रबंधन?
प्रशांत किशोर, जो खुद को व्यवस्था परिवर्तन का वाहक बताते हैं और बिहार में ‘जनसुराज’ आंदोलन के जरिए राजनीति में नई सोच लाने का दावा करते हैं, उनकी इस सभा ने सवालों के घेरे में पार्टी की नीयत और कार्यशैली को ला खड़ा किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह घटना दर्शाती है कि ‘भीड़ जुटाने’ के लिए पारंपरिक और भ्रामक तरीकों का सहारा लिया गया है।
राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि जब लोग किसी सभा में यह न जानें कि वे किसे सुनने आए हैं, तो यह नेतृत्व की असफलता का संकेत है। बुद्धिजीवियों ने भी इस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, “जनता अब सिर्फ भीड़ नहीं है, वह जानती है कि किसे सुनना है और क्यों।”

पार्टी की चुप्पी और सवालों की गूंज
इस पूरे मामले पर अब तक जनसुराज पार्टी या प्रशांत किशोर की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। पार्टी की रणनीति और साख पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर तब जब प्रशांत किशोर लगातार यह दावा करते हैं कि वह पारंपरिक राजनीति से हटकर एक नई राजनीति की नींव रख रहे हैं।
निष्कर्ष
जनसुराज पार्टी की यह ‘बदलाव सभा’ एक नाटकीय मोड़ ले चुकी है, जिसमें भीड़ तो नजर आई, लेकिन सोच, उद्देश्य और समर्थन का अभाव स्पष्ट दिखाई दिया। अगर सच में बदलाव लाना है, तो नेताओं को सबसे पहले जनता के साथ पारदर्शिता और ईमानदारी से पेश आना होगा — वरना ‘बदलाव’ का यह नारा भी बाकी नारों की तरह खोखला साबित होगा।
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