किशनगंज: बिहार में इन दिनों मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान के तहत बड़े पैमाने पर जांच-पड़ताल की जा रही है। इस प्रक्रिया के दौरान अब तक करीब 3 लाख मतदाताओं को नोटिस भेजे जा चुके हैं, जिनमें उनसे उनके पहचान-पत्रों और नागरिकता से जुड़ी जानकारी को लेकर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
हालांकि यह प्रक्रिया राज्य भर में चल रही है, लेकिन किशनगंज जिला इस वक्त संकट और विवाद का केंद्र बन गया है। यहां के कई स्थानीय नागरिकों को बांग्लादेशी या विदेशी मानते हुए नोटिस दिए गए हैं, जिससे उनके मतदाता अधिकार और नागरिकता पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

रतन सिंह का मामला: पहचान पर संदेह
किशनगंज के रतन सिंह, जो लंबे समय से मजदूरी के लिए दूसरे शहरों में रह रहे हैं, को इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) द्वारा नोटिस प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपना आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड प्रस्तुत कर दिया है, लेकिन उनके पास स्थायी निवास प्रमाण-पत्र नहीं है, जो उन्हें समय पर प्रस्तुत करना था।
रतन के पिता बांग्लादेश से भारत आए थे, लेकिन रतन और उनके सभी भाई-बहन भारत में ही जन्मे हैं। बावजूद इसके, उन्हें अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेजों की मांग की जा रही है।

मुनिया देवी को मां के दस्तावेजों से जोड़कर नोटिस
एक अन्य मामला मुनिया देवी का है, जो नेपाल के पाठामारी गांव की मूल निवासी हैं। 2011 में उनकी शादी भारत के गलगलिया गांव में हुई थी। उनके पास भारत के सभी मान्य दस्तावेज मौजूद हैं – आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड आदि। बावजूद इसके, प्रशासन उनसे उनकी मां के दस्तावेज मांग रहा है।
मुनिया की मां पिछले 8 साल से भारत में रह रही हैं, उनके पास आधार कार्ड भी है और वे पहले भी वोट डाल चुकी हैं। इसके बावजूद, मुनिया की भारतीयता पर संदेह जताया जा रहा है।

पंचायत स्तर पर भी तनाव
बेसरबाती पंचायत की मुखिया अनुपम ठाकुर ने जानकारी दी कि उनके क्षेत्र के लगभग 12-13 लोगों को बांग्लादेशी कहकर नोटिस भेजा गया है। मुखिया का कहना है कि ये सभी लोग वर्षों से यहीं रह रहे हैं और सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। हालांकि, इनमें से कई के पूर्वज नेपाल या बांग्लादेश से आए थे, लेकिन अब वे पूरी तरह से भारतीय समाज में रच-बस चुके हैं।
अनुपम ठाकुर ने सरकार से मांग की है कि ऐसे लोगों को संवैधानिक रूप से भारतीय नागरिकता प्रदान की जाए, ताकि वे बेवजह के कानूनी शिकंजे और सामाजिक कलंक से बच सकें।

चुनाव आयोग की मंशा और जमीनी हकीकत
चुनाव आयोग का कहना है कि यह अभियान मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करने के लिए चलाया जा रहा है, ताकि कोई फर्जी या अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न रहे। लेकिन जमीनी स्तर पर यह प्रक्रिया अत्यधिक जटिल और परेशान करने वाली बनती जा रही है।
दस्तावेजों की कमी, समय की सीमा, और सूचना का अभाव ऐसे कारण हैं जिनसे बड़ी संख्या में लोग नोटिस का जवाब समय पर नहीं दे पा रहे हैं। इसके चलते उन्हें अपने मतदाता अधिकार से वंचित होने का डर सता रहा है।
प्रशासन का रुख
स्थानीय प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि किसी के साथ अन्याय नहीं होगा और सभी को अपनी बात रखने और दस्तावेज प्रस्तुत करने का पर्याप्त अवसर दिया जाएगा। लेकिन प्रभावित लोगों का कहना है कि उन्हें न तो प्रक्रिया की पूरी जानकारी है और न ही आवश्यक दस्तावेज जुटाने के संसाधन।
निष्कर्ष
किशनगंज में जो स्थिति बन रही है, वह केवल एक जिले की नहीं, बल्कि एक गंभीर और संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दे की ओर इशारा करती है – जहां नागरिकता, पहचान और अधिकार के बीच संतुलन बनाना चुनौती बनता जा रहा है।
आगामी चुनावों से पहले यह देखना अहम होगा कि चुनाव आयोग और प्रशासन ऐसे मामलों को कानून और मानवीयता के संतुलन के साथ कैसे सुलझाते हैं।
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