बिहार विधानसभा चुनाव के महासंग्राम के बीच किशनगंज जिले की बहादुरगंज सीट एक बार फिर सियासी चर्चाओं के केंद्र में है। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। कांग्रेस, एआईएमआईएम और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रत्याशी आमने-सामने हैं, जबकि चुनाव प्रचार का अंतिम दौर अपने चरम पर पहुंच चुका है।

कांग्रेस के लिए हॉट सीट बनी बहादुरगंज
बहादुरगंज विधानसभा सीट कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा से एक मजबूत आधार रही है। पार्टी इस सीट को दोबारा अपने खाते में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। प्रचार अभियान को धार देने के लिए कांग्रेस ने अपने शीर्ष नेताओं को मैदान में उतारा है। सांसद एकरा हसन, राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और किशनगंज से कांग्रेस सांसद डॉ. मुहम्मद जावेद आज़ाद ने बहादुरगंज में ताबड़तोड़ रैलियां की हैं।
अब प्रचार के अंतिम दिन खुद राहुल गांधी बहादुरगंज पहुंच रहे हैं, जिससे इस सीट पर सियासी तापमान और भी बढ़ गया है। कांग्रेस प्रत्याशी प्रोफेसर मुसब्बिर आलम ने दावा किया है कि जनता इस बार बदलाव के मूड में है और बहादुरगंज फिर से कांग्रेस की झोली में जाएगी।

तौसीफ आलम ने बदला पाला, AIMIM से लड़ रहे चुनाव
बहादुरगंज सीट पर सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब कांग्रेस के तीन बार के पूर्व विधायक तौसीफ आलम ने पार्टी छोड़कर एआईएमआईएम का दामन थाम लिया। तौसीफ आलम 2010, 2015 और 2020 से पहले तक लगातार तीन बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक रह चुके हैं।
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर एआईएमआईएम ने कब्जा जमाया था, जिससे कांग्रेस का किला हिल गया था। इस बार तौसीफ आलम एआईएमआईएम से चुनाव मैदान में हैं, जिससे मुकाबला और भी रोचक हो गया है।
तीसरी ताकत बनकर उभर रही है लोजपा (रामविलास)
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रत्याशी भी इस बार बहादुरगंज की जंग को त्रिकोणीय बना रहे हैं। पार्टी का दावा है कि युवाओं और पिछड़े वर्ग के वोटरों में उसे मजबूत समर्थन मिल रहा है। लोजपा (रामविलास) के कार्यकर्ता इलाके में घर-घर जाकर जनसंपर्क कर रहे हैं और एनडीए के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
महागठबंधन बनाम एनडीए — किसके पाले में जाएगा बिहार?
राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने दावा किया है कि बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है, जबकि एनडीए नेता राज्य में बहुमत का दावा कर रहे हैं। बहादुरगंज की इस सीट का नतीजा न सिर्फ कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, बल्कि यह पूरे सीमांचल इलाके के सियासी समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।

नतीजे पर टिकी निगाहें
अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के खोए गढ़ में राहुल गांधी की एंट्री से फिर से ‘हाथ’ का परचम लहराएगा, या फिर एआईएमआईएम की पतंग एक बार फिर आसमान छूएगी? लोजपा (रामविलास) भी इस सियासी जंग में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने को पूरी तरह तैयार है।
चुनाव प्रचार थमने के साथ ही अब निगाहें मतदान दिवस और परिणामों पर टिक गई हैं — और यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 में बिहार का ये सियासी रण किसके पक्ष में जाता है।
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