बिहार के अररिया जिले के कुर्साकाटा बाजार की निवासी युवा कलाकार प्रज्ञा ठाकुर ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को एक अनोखे तरीके से प्रस्तुत करने का न केवल निर्णय लिया है, बल्कि उसे आकार भी दिया है। प्रज्ञा इस समय एक विशेष 18 मीटर लंबा मानचित्र बना रही हैं, जिसमें बिहार राज्य के सभी 38 जिलों की सांस्कृतिक धरोहरों को प्रमुखता से दर्शाया जाएगा। इस कलाकृति के जरिए वह बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों को विश्व के सामने लाने का प्रयास कर रही हैं।
प्रज्ञा का उद्देश्य न केवल राज्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करना है, बल्कि यह मानचित्र बिहारवासियों के लिए गर्व का कारण बने। उनके द्वारा बनाई जा रही इस कला में राज्य की प्रसिद्ध सांस्कृतिक धरोहरों को साकार रूप दिया जाएगा, जिनमें बिहार के प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु और काली मंदिर जैसी ऐतिहासिक धरोहरें शामिल हैं। यह पहल उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी जो कला के क्षेत्र में कुछ नया और भव्य करना चाहते हैं।
प्रज्ञा ने इस मानचित्र को बनाने के लिए मेहंदी का उपयोग करने का निर्णय लिया है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। उनके अनुसार, इस कला को बनाने के लिए लगभग 8-10 किलो मेहंदी की आवश्यकता होगी। प्रज्ञा का मानना है कि मेहंदी का उपयोग कला के साथ-साथ बिहार की पारंपरिक संस्कृति को भी प्रदर्शित करता है। उनका यह उद्देश्य है कि बिहार दिवस से पहले इस कलाकृति को पूरा कर जिला प्रशासन द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जाए।
प्रज्ञा का यह प्रोजेक्ट उनके कला के प्रति प्रेम और संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि उन्हें पेंटिंग का शौक अपने भाई से मिला है, जो इस समय सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके भाई ने हमेशा उनका उत्साह बढ़ाया और उनकी कला को सम्मान दिया, जिससे वह आज इस मुकाम तक पहुंच सकी हैं।
प्रज्ञा की यह कलात्मक यात्रा यहीं खत्म नहीं होती। उनकी कलात्मक आकांक्षाएं और भी ऊँची हैं। वह चाहती हैं कि उनकी इस अनूठी कलाकृति को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में स्थान मिले। इसके लिए वह दिन-रात मेहनत कर रही हैं और मानती हैं कि इस प्रकार के प्रयासों से न केवल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को सराहा जाएगा, बल्कि विश्व भर में बिहार की पहचान भी बनेगी।
इससे पहले, प्रज्ञा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक प्रतिमा भेंट करने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में बदलाव के कारण यह संभव नहीं हो सका। फिर भी, प्रज्ञा का मानना है कि उनकी कला का उद्देश्य समाज के हर वर्ग तक पहुंचना और बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को गर्व से प्रस्तुत करना है।
प्रज्ञा की यह कोशिश न केवल कला प्रेमियों के लिए, बल्कि पूरे बिहार के लिए एक प्रेरणा है, जो यह दिखाती है कि कला के माध्यम से किसी भी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और प्रदर्शित किया जा सकता है, और इसे वैश्विक मंच पर सम्मान भी मिल सकता है।