किशनगंज जिले के कोचाधामन प्रखंड में आयोजित वोटर लिस्ट पुनरीक्षण की बैठक उस समय विवाद का केंद्र बन गई, जब प्रखंड की उप प्रमुख प्रतिनिधि शेरशाह आलम भारती और स्वयं उप प्रमुख समदानी बेगम भारती ने बैठक के दौरान प्रक्रिया पर कड़ा ऐतराज जताया। दोनों प्रतिनिधियों ने सरकार पर “बैक डोर से एनआरसी (NRC)” थोपने का आरोप लगाते हुए बैठक का बहिष्कार कर दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बैठक में जब अधिकारियों द्वारा पुनरीक्षण प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेजों की सूची प्रस्तुत की गई, तब उप प्रमुख समदानी बेगम ने तीखी आपत्ति दर्ज की। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इस प्रक्रिया के ज़रिए दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और गरीब तबके को जानबूझकर निशाना बना रही है।

कौन-कौन से दस्तावेज माने जा रहे हैं अमान्य?
समदानी बेगम का कहना है कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या अपडेट करने के लिए जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, उनमें कई आम लोगों के लिए जुटा पाना बेहद मुश्किल है। उन्होंने कहा कि:
- 1987 से पहले के दस्तावेज
- विवाह से पूर्व के प्रमाण
- मृत पूर्वजों के दस्तावेज
- जमीन की रसीदें, खतियान और केवाला
- आधार कार्ड
- बैंक पासबुक
को भी अमान्य बताया जा रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब आधार और बैंक पासबुक जैसे दस्तावेज स्वयं सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, तो फिर इन्हें वोटर लिस्ट के प्रमाण के रूप में अस्वीकार क्यों किया जा रहा है?

क्या कहा उप प्रमुख ने?
बैठक के दौरान नाराज होकर बाहर निकलते हुए समदानी बेगम ने मीडिया से बातचीत में कहा, “यह पूरी प्रक्रिया एनआरसी को चुपचाप लागू करने की तैयारी है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब, अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े वर्ग पर पड़ेगा। हम इस नाइंसाफी को स्वीकार नहीं करेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोका नहीं गया और लोगों के पास उपलब्ध प्रामाणिक दस्तावेजों को स्वीकार नहीं किया गया, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगी।

प्रशासन की चुप्पी
हालांकि बैठक में मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन स्थानीय स्तर पर विरोध के सुर तेज हो गए हैं और राजनीतिक तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
निष्कर्ष
कोचाधामन की यह घटना न केवल स्थानीय राजनीति में हलचल पैदा कर रही है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि वोटर लिस्ट पुनरीक्षण जैसे संवेदनशील विषय पर अधिक पारदर्शिता और जनसमर्थन की आवश्यकता है। यदि प्रशासन इस प्रक्रिया को बिना संवाद और सहमति के लागू करता है, तो भविष्य में इसे लेकर व्यापक स्तर पर विरोध उभर सकता है।
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