फारबिसगंज (अररिया): भारत के प्रथम राष्ट्रपति और बिहार के गौरव डॉ. राजेंद्र प्रसाद की स्मृति को संरक्षित रखने के बजाय फारबिसगंज नगर परिषद ने उनके नाम से स्थापित ऐतिहासिक चौक के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। वर्षों से ‘राजेंद्र चौक’ के नाम से पहचाने जाने वाले स्थान पर अब नया साइनबोर्ड लगाकर उसे ‘धर्मशाला चौक’ कर दिया गया है। इससे न सिर्फ स्थानीय लोगों में रोष व्याप्त है, बल्कि यह फैसला कई सवालों को भी जन्म दे रहा है।

इतिहास से खिलवाड़: बदल दिया नाम
फारबिसगंज शहर के हृदयस्थल पर स्थित यह चौक लंबे समय से डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आदमकद प्रतिमा के कारण ‘राजेंद्र चौक’ के नाम से प्रसिद्ध रहा है। प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर अनुमंडल प्रशासन एवं नगर परिषद मिलकर यहां माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। यह स्थान डॉ. प्रसाद के सम्मान और गौरव का प्रतीक बन चुका था।
लेकिन अब नगर परिषद द्वारा यहां ‘धर्मशाला चौक’ का बोर्ड लगाकर उसके मूल स्वरूप को ही बदलने की कोशिश की जा रही है। यह कदम न केवल डॉ. राजेंद्र प्रसाद के योगदान के अपमान के तौर पर देखा जा रहा है, बल्कि यह प्रशासन की ऐतिहासिक विरासतों के प्रति उदासीनता को भी दर्शाता है।

जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत का आरोप
स्थानीय लोगों और समाजसेवियों ने आरोप लगाया है कि नगर परिषद में चेयरमैन, वाइस चेयरमैन और अन्य पदाधिकारियों की मिलीभगत से न केवल चौक का नाम बदला गया है, बल्कि नगर परिषद में भ्रष्टाचार भी चरम पर है। आरोप है कि यह निर्णय मनमाने ढंग से, बिना जनमत या अधिसूचना के लिया गया है।

सीसीटीवी घोटाले का भी आरोप
नाम बदलने के विवाद के साथ-साथ नगर परिषद पर सीसीटीवी कैमरा घोटाले का भी आरोप लग रहा है। जानकारी के अनुसार, शहर में 198 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए, लेकिन पूर्व में खरीदे गए 90 कैमरों का सामान पहले ही गिर चुका था — यानी परिषद पहले से तय कर चुकी थी कि उपकरण कहां से खरीदना है। आरोप है कि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई।
विशेष रूप से यह बात तब संदेह पैदा करती है जब कुछ पार्षदों ने खुद अपने घर के बाहर कैमरे लगवा लिए — यानी नगर परिषद के संसाधनों का निजी उपयोग किया गया। सरकार भले ही बढ़ते अपराधों को लेकर गंभीर हो, लेकिन स्थानीय स्तर पर पारदर्शिता और ईमानदारी की भारी कमी साफ दिखाई देती है।

जनता में आक्रोश, कार्रवाई की मांग
स्थानीय नागरिकों, समाजसेवियों और इतिहासप्रेमियों ने मांग की है कि ‘राजेंद्र चौक’ का नाम तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। साथ ही, सीसीटीवी कैमरा घोटाले की निष्पक्ष जांच की मांग भी जोर पकड़ रही है।

निष्कर्ष
फारबिसगंज में डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसी महान विभूति की स्मृति से छेड़छाड़ करना केवल एक नाम बदलना नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक चेतना और राष्ट्रीय गौरव के साथ विश्वासघात है। इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई न हुई, तो यह एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत हो सकती है, जहां इतिहास और सम्मान को मनमाने फैसलों की भेंट चढ़ा दिया जाएगा।
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