पूर्णिया जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र स्थित टेटगामा गांव में उस समय विवाद गहरा गया जब डिप्टी डायरेक्टर रघुवर प्रसाद पर स्थानीय वार्ड सदस्य अखिलेश महलदार के साथ अभद्र और जातिसूचक व्यवहार करने का आरोप लगा। यह मामला तब प्रकाश में आया जब घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसमें अधिकारी की कथित बदसलूकी साफ दिखाई दे रही है। इसके बाद पूरे क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है।

पृष्ठभूमि: टेटगामा हत्याकांड की जांच के दौरान हुआ विवाद
डिप्टी डायरेक्टर रघुवर प्रसाद टेटगामा गांव में पूर्व में हुई एक हत्या की जांच के सिलसिले में पहुंचे थे। जांच के दौरान ही उनका विवाद वार्ड सदस्य अखिलेश महलदार से हो गया। आरोप है कि अधिकारी ने न केवल वार्ड सदस्य को अपमानित किया, बल्कि उनके खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी भी की।

जनप्रतिनिधियों ने की तीखी प्रतिक्रिया
घटना के बाद विभिन्न पंचायत और राजनीतिक संगठनों के नेताओं ने एकजुट होकर प्रशासन के रवैये की कड़ी आलोचना की।
उप सरपंच संघ के प्रखंड अध्यक्ष मदनलाल मंडल ने कहा, “एक जनप्रतिनिधि के साथ इस तरह का व्यवहार निंदनीय है। अधिकारी द्वारा की गई जातिसूचक टिप्पणी शर्मनाक है। गांव में चौकीदार की अनुपस्थिति के कारण यह स्थिति और बिगड़ गई। प्रशासन को इस पर गंभीरता से कार्रवाई करनी चाहिए।”
रजीगंज पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि संतोष सिंह ने भी मामले को लेकर नाराजगी जताई और कहा, “यह बेहद दुखद है कि एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि का अपमान किया जा रहा है। अधिकारी के खिलाफ तुरंत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। जनप्रतिनिधियों का सम्मान लोकतंत्र की बुनियाद है।”

प्रशासन पर निष्क्रियता के आरोप
घटना के 15 दिन बीत जाने के बावजूद, किसी भी तरह का जनजागरूकता या संवाद कार्यक्रम प्रशासन द्वारा नहीं चलाया गया है, जिससे नाराजगी और बढ़ गई है।
सीपीएम के जिला सचिव राजीव सिंह ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “प्रशासन अपनी विफलता छिपाने के लिए जनप्रतिनिधियों को निशाना बना रहा है। घटना के बाद कोई जागरूकता कार्यक्रम नहीं चलाया गया है, जो दर्शाता है कि यह केवल एक अधिकारी की गलती नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था की असफलता है।”
जनप्रतिनिधियों की मांग – अधिकारी पर हो सख्त कानूनी कार्रवाई
वर्तमान में सभी जनप्रतिनिधियों की मांग है कि डिप्टी डायरेक्टर रघुवर प्रसाद के खिलाफ न सिर्फ प्रशासनिक कार्रवाई की जाए, बल्कि उनके खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी और अभद्र व्यवहार को लेकर कानूनी प्रक्रिया भी शुरू की जाए।
घटना ने एक बार फिर प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव को उजागर कर दिया है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों के प्रति संवेदनशील और सम्मानजनक व्यवहार नहीं करना चाहिए?
अगला कदम
अब निगाहें जिला प्रशासन और सरकार पर टिकी हैं कि वे इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। यदि समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला और अधिक तूल पकड़ सकता है और क्षेत्रीय राजनीति में उबाल ला सकता है।
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