पूर्णिया: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल बढ़ाने वाला बयान सामने आया है। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान को खुलेआम न्योता दिया है कि यदि वे महागठबंधन में असहज महसूस कर रहे हैं, तो वे उनके साथ आ सकते हैं।
पप्पू यादव: “चिराग पासवान महागठबंधन छोड़ें, हमारे साथ आएं”
पप्पू यादव ने चिराग पासवान और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच नजदीकियों का हवाला देते हुए कहा,
“चिराग पासवान और प्रशांत किशोर एक हो चुके हैं। प्रशांत किशोर को अब चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर देनी चाहिए।”
उन्होंने तंज कसते हुए प्रशांत किशोर को “परेशान आत्मा” बताया और चिराग पासवान को सीधा निमंत्रण देते हुए कहा:
“चिराग जी, उधर छोड़िए और इधर आइए। हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ आइए। अगर आपको वहां (महागठबंधन में) पसंद नहीं है तो हम आपका स्वागत करते हैं।”
पप्पू यादव: “चिराग पासवान महागठबंधन छोड़ें, हमारे साथ आएं”
JDU को हो सकता है नुकसान
पप्पू यादव ने इस बयान में यह भी स्पष्ट किया कि अगर चिराग पासवान की पार्टी कुछ भी सीटें जीतने में सफल होती है, तो इसका सीधा नुकसान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) को होगा। उन्होंने कहा:
“सभी को पता है कि अगर ये कुछ भी सीट जीतेंगे तो JDU के लिए दिक्कत होगी, नीतीश जी के लिए दिक्कत है।”
पप्पू यादव: “चिराग पासवान महागठबंधन छोड़ें, हमारे साथ आएं”
महागठबंधन के भीतर भी असंतोष के संकेत
सांसद पप्पू यादव ने यह भी दावा किया कि महागठबंधन के अंदर भी एक-दो लोग ऐसे हैं जो नाखुश हैं, और यह राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ा सकता है।
राजनीतिक मायने
पप्पू यादव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार की राजनीति में नए गठबंधन और समीकरणों की अटकलें तेज हैं। चिराग पासवान पहले भी NDA से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ चुके हैं और वे खुद को रामविलास पासवान की विरासत के असली उत्तराधिकारी के रूप में पेश करते रहे हैं।
अब पप्पू यादव के इस बयान को संभावित “तीसरे मोर्चे” या राजनीतिक पुनर्संयोजन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें वह खुद को केंद्र में रखने की कोशिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
बिहार में आगामी चुनावों को देखते हुए यह बयान न सिर्फ चिराग पासवान की रणनीति पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पप्पू यादव खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि चिराग पासवान इस आमंत्रण को किस रूप में लेते हैं।