बिहार में सरकारी लापरवाही का एक अजीबोगरीब मामला इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। अररिया जिले में एक कुत्ते के नाम आवासीय प्रमाण पत्र (रेजिडेंस सर्टिफिकेट) जारी कर दिया गया, जिसके बाद न केवल प्रशासनिक प्रणाली पर सवाल उठे, बल्कि इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है।

इस घटना को लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कल अररिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए इस मुद्दे पर सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “जब कुत्तों के नाम प्रमाण पत्र जारी होने लगे, तो समझ लीजिए कि सिस्टम पूरी तरह से चरमरा गया है।” तेजस्वी यादव ने इसे बिहार में प्रशासनिक विफलता का प्रतीक बताया और इसे “कागज़ी विकास” का उदाहरण करार दिया।

भाजपा का पलटवार: “तेजस्वी को सिर्फ भाषण देना आता है”
तेजस्वी यादव के बयान पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पलटवार किया है। अररिया में भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी रवि रौशन यादव ने तेजस्वी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि “जब राजद की सरकार थी, तब लोगों के साथ क्या होता था, इसे कोई भूल नहीं सकता। तेजस्वी यादव सिर्फ भाषण देने आते हैं, काम करने की क्षमता उनमें नहीं है।”
रवि रौशन ने आगे कहा, “अगर तेजस्वी को प्रमाण पत्रों की इतनी चिंता है, तो पहले अपने नेताओं की योग्यता और उनके द्वारा किए गए घोटालों पर नज़र डालें। सम्राट चौधरी जैसे हमारे नेताओं के प्रमाणपत्रों की चिंता छोड़ें और खुद का रिकॉर्ड दिखाएं। जनता अब सब समझ चुकी है कि कौन काम करता है और कौन सिर्फ बयानबाज़ी करता है।”

प्रशासनिक जांच के आदेश
इस पूरे घटनाक्रम के बाद स्थानीय प्रशासन भी हरकत में आ गया है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, यह मामला तकनीकी त्रुटि के कारण हुआ बताया जा रहा है, और जिला प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया है, और लापरवाही पाए जाने पर कार्रवाई की बात कही गई है।
क्या है मामला?
जानकारी के अनुसार, हाल ही में अररिया जिले में एक व्यक्ति ने अपने कुत्ते के नाम पर ऑनलाइन आवासीय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। हैरानी की बात यह है कि आवेदन बिना किसी सत्यापन के मंज़ूर हो गया और प्रमाण पत्र जारी भी कर दिया गया। इस बात का खुलासा होते ही सोशल मीडिया पर यह मामला वायरल हो गया, और लोगों ने बिहार की प्रशासनिक प्रणाली का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया।
निष्कर्ष: यह मामला सिर्फ एक तकनीकी भूल नहीं, बल्कि उस व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है जो बिना सत्यापन के दस्तावेज़ जारी कर देती है। साथ ही यह स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में इस मुद्दे को अब हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, और आने वाले दिनों में यह बहस और तेज हो सकती है।
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