अररिया: आजादी के 79 वर्ष पूरे होने को हैं, लेकिन आज भी देश के असली नायकों और उनके परिवारों को वह सम्मान और सुविधा नहीं मिल पा रही, जिसके वे सच्चे हकदार हैं। अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड के कुंडीलपुर गांव की रहने वाली मालती देवी, बीते सात वर्षों से स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनके दिवंगत पति स्व. कलानंद सिंह न केवल स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी रहे, बल्कि उन्हें वर्ष 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति सम्मान से भी नवाज़ा गया था।

स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका
कलानंद सिंह का जन्म 1918 में हुआ था। वे 1931 और 1942 के स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान सक्रिय रूप से शामिल रहे। अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष करते हुए उन्होंने भागलपुर सेंट्रल जेल में कई वर्ष कैद भी काटे। स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें मान्यता प्रदान की थी। वहीं, मालती देवी स्वयं भी इस संघर्ष का हिस्सा रहीं। उन्होंने सेनानियों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था की, और गांव के युवाओं को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।

सात वर्षों से पेंशन का इंतजार
स्वतंत्रता सेनानी कलानंद सिंह के निधन के बाद मालती देवी को पेंशन योजना के अंतर्गत लाभ मिलना चाहिए था, लेकिन सात साल बीत जाने के बाद भी उन्हें अब तक पेंशन प्राप्त नहीं हुई है। इस बीच वे कई सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट चुकी हैं, परंतु अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
मालती देवी का कहना है:
“देश की आज़ादी के लिए सब कुछ न्योछावर किया, लेकिन आज उसी देश में सम्मान और सहयोग के लिए तरसना पड़ रहा है। सात साल से अधिकारी केवल आश्वासन दे रहे हैं, पर नतीजा शून्य है।”
पिछले साल मिला था सम्मान, पर बात वहीं अटकी
पिछले वर्ष 15 अगस्त 2024 को रानीगंज के तत्कालीन बीडीओ रीतम कुमार ने मालती देवी के घर जाकर उन्हें शॉल भेंट कर सम्मानित किया था। उन्होंने वादा किया था कि पेंशन जल्द शुरू कराई जाएगी। लेकिन एक साल बीतने के बाद भी न कोई फाइल आगे बढ़ी, न कोई राशि जारी हुई।
फटेहाल में गुज़र-बसर
आज मालती देवी और उनका परिवार बेहद दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा है। न तो कोई स्थायी आय का स्रोत है, न कोई सामाजिक सुरक्षा। वे कहती हैं कि 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर भी उन्हें कोई पूछने नहीं आता। यह उपेक्षा न केवल प्रशासन की लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान के प्रति समाज की संवेदनहीनता भी उजागर करती है।
प्रशासन का जवाब
इस संबंध में जब अररिया के एसडीएम रवि प्रकाश से बात की गई, तो उन्होंने आश्वासन दिया कि
“पेंशन प्रक्रिया जल्द पूरी की जाएगी और मालती देवी को उनका अधिकार मिलेगा।”
हालांकि, मालती देवी का सवाल आज भी अनुत्तरित है:
“अगर हमने देश को सब कुछ दिया, तो क्या इस उम्र में हमें दर-दर भटकना चाहिए?”
सवाल व्यवस्था से
मालती देवी की यह कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि उन हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की आवाज़ है, जो आज भी कागज़ों में जिंदा हैं, लेकिन व्यवस्था में कहीं खो गए हैं। ऐसे में जरूरी है कि सरकार और समाज दोनों मिलकर यह सुनिश्चित करें कि स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारों को सम्मानजनक जीवन मिले।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर संकल्प की जरूरत
79वें स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर देश को यह आत्ममंथन करने की जरूरत है कि क्या केवल तिरंगा फहराने और परेड निकालने से ही आज़ादी का सम्मान होता है? क्या हमें उन परिवारों को नहीं देखना चाहिए, जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया?
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