किशनगंज: जिले के बहादुरगंज प्रखंड क्षेत्र से मतदाता सूची में गंभीर अनियमितता का मामला सामने आया है। एक ही व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग मतदान केंद्रों पर दर्ज पाया गया है, जिससे न केवल चुनावी पारदर्शिता पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की ओर भी इशारा मिलता है।
यह मामला **बहादुरगंज नगर परिषद वार्ड संख्या 07** के निवासी **दिनेश प्रसाद मांझी** से जुड़ा है। मांझी एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं और साथ ही **टेढ़ागाछ प्रखंड क्षेत्र के जिला परिषद सदस्य** की पति भी हैं। इतना ही नहीं, वे पूर्व में **BLO (बूथ लेवल ऑफिसर)** के रूप में भी कार्य कर चुके हैं, जिससे उन्हें मतदाता सूची की प्रक्रिया की अच्छी-खासी जानकारी होनी चाहिए।

क्या है मामला?
जारी मतदाता सूची के अनुसार, दिनेश प्रसाद मांझी का नाम:
* **बहादुरगंज नगर पंचायत के बूथ संख्या 200**, क्रम संख्या 307 पर **EPIC नंबर IR02515211** के अंतर्गत दर्ज है।
* इसके साथ ही, **टेढ़ागाछ प्रखंड के बूथ संख्या 99**, क्रम संख्या 441 पर भी **EPIC नंबर IR00184184** के तहत उनका नाम मौजूद है।
इस प्रकार, उनके नाम दो अलग-अलग मतदाता पहचान पत्र (EPIC) नंबरों के साथ दो क्षेत्रों की सूची में दर्ज हैं, जो चुनाव आयोग के नियमों के खिलाफ है और *डुप्लीकेट वोटिंग* की संभावना को जन्म देता है।

प्रशासन ने क्या कहा?
मामले की पुष्टि करते हुए **बहादुरगंज प्रखंड विकास पदाधिकारी सुरेंद्र तांती** ने बताया कि उन्हें इस गड़बड़ी की सूचना मिल चुकी है और **प्राथमिक जांच शुरू कर दी गई है**। उन्होंने कहा, “इस तरह की त्रुटि गंभीर है। संबंधित व्यक्ति से संपर्क किया जा रहा है, और नियमानुसार एक स्थान से नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।”

क्या कहता है कानून?
भारत के निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार, *एक व्यक्ति एक ही विधानसभा क्षेत्र में, एक ही बार नाम दर्ज करवा सकता है।* एक से अधिक बार नाम दर्ज किया जाना **अवैध** माना जाता है और यदि जानबूझकर किया गया हो तो यह **दंडनीय अपराध** भी बन सकता है।
चुनाव की निष्पक्षता पर असर
इस घटना से निर्वाचन प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। खास बात यह है कि जिस व्यक्ति का नाम दो जगह पाया गया है, वह खुद पूर्व BLO रह चुका है, जिससे यह मामला और भी संवेदनशील हो गया है। विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने इस पर कड़ी निगरानी रखने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।
क्या है आगे की प्रक्रिया?
प्रशासनिक स्तर पर जांच जारी है। यदि पाया जाता है कि यह गलती जानबूझकर की गई है या मतदाता ने गलत जानकारी दी है, तो संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की जा सकती है। वहीं, अगर यह महज तकनीकी त्रुटि है, तो नामों के समायोजन की प्रक्रिया जल्द पूरी की जाएगी।
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निष्कर्ष:
मतदाता सूची की पवित्रता लोकतंत्र की नींव है। किशनगंज का यह मामला दर्शाता है कि चुनावी व्यवस्थाओं में अब भी सतर्क निगरानी की ज़रूरत है। प्रशासन की ओर से त्वरित जांच की शुरुआत सकारात्मक कदम है, लेकिन ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए निर्वाचन आयोग को तकनीकी और मानवीय दोनों स्तरों पर सतर्कता बढ़ाने की आवश्यकता है।
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