कटिहार (बिहार): कटिहार जिले में करवा चौथ का पर्व पारंपरिक आस्था और उत्साह के साथ मनाया गया। इस विशेष अवसर पर जिले भर की सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखा। पूरे दिन बिना अन्न और जल के उपवास करने के बाद, महिलाओं ने शाम को चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित कर व्रत खोला।
इस मौके पर शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल देखने को मिला। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर पूजा में सम्मिलित हुईं। लाल, पीले और गुलाबी रंग की चुनरियों, भारी साज-सज्जा और पारंपरिक आभूषणों से सजी महिलाओं ने पूरे समाज में उत्सव का रंग घोल दिया।

गुरुद्वारा में हुआ सामूहिक आयोजन
कटिहार शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक स्थानीय गुरुद्वारा में करवा चौथ का एक विशेष सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस आयोजन का नेतृत्व नीलम लछवानी ने किया, जिसमें दर्जनों महिलाओं ने भाग लिया। आयोजन में सभी ने मिलकर विधिवत रूप से पूजा-अर्चना की और करवा चौथ की कथा सुनी।

करवा का विशेष महत्व
करवा चौथ की पूजा में ‘करवा’ (मिट्टी का बना एक छोटा पात्र) का विशेष महत्व होता है। इसे देवी का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। परंपरा के अनुसार, महिलाएं दो करवे बनाती हैं — एक देवी को अर्पित करने के लिए और दूसरा अपने लिए। कुछ स्थानों पर महिलाएं तांबे या स्टील के लोटे का भी उपयोग करती हैं।
पूजा के बाद महिलाएं चलनी से चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देती हैं और फिर अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं। यह प्रक्रिया पति-पत्नी के प्रेम और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।

पौराणिक मान्यताएं और धार्मिक आस्था
करवा चौथ का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, करवा नामक एक पत्नी ने अपने पति को मगरमच्छ के पंजे से बचाया था। उसकी निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उसे वरदान दिया और तभी से उसे ‘करवा माता’ का दर्जा प्राप्त हुआ। इसके बाद से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई।
इसके अलावा, महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा अर्जुन के लिए रखे गए व्रत और माता पार्वती द्वारा भगवान शिव के लिए किए गए उपवास का भी उल्लेख मिलता है। इन कथाओं के माध्यम से यह व्रत भारतीय संस्कृति में महिला शक्ति, प्रेम और त्याग का प्रतीक बन चुका है।
पारिवारिक एकता और सामाजिक सौहार्द का उत्सव
कटिहार में करवा चौथ अब केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं रह गई है, बल्कि यह पारिवारिक संबंधों को प्रगाढ़ करने और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देने का भी अवसर बन गया है। सामूहिक पूजा स्थलों पर महिलाओं का एकजुट होना न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि यह सामाजिक समरसता का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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