अररिया में नदी किनारे मिले नवजात शिशु को सदर अस्पताल द्वारा एक मछुआरे के हवाले कर देने का मामला अब गंभीर रूप लेता दिख रहा है। बाल कल्याण समिति (CWC) ने इस पूरे प्रकरण को अत्यंत संवेदनशील मानते हुए अस्पताल प्रबंधन से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। समिति ने कई बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि प्रक्रिया के दौरान किस स्तर पर लापरवाही हुई।

कैसे मिली मासूम की जान
यह घटना 11 नवंबर की दोपहर सामने आई, जब अररिया शहर के त्रिशूलिया घाट, परमान नदी के किनारे एक काले प्लास्टिक बैग में थर्मोकोल के साथ बंद एक नवजात शिशु मिला। खरेयाबस्ती वार्ड 28 के मछुआरे रहबर आलम ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी। पास जाकर जब बैग खोला गया तो उसमें एक जीवित नवजात दिखाई पड़ा। रहबर आलम ने तुरंत बच्चे को उठाया और उसे सदर अस्पताल ले गए।

अस्पताल की कार्रवाई पर सवाल
चौंकाने वाली बात यह रही कि अस्पताल प्रबंधन और नगर थाना पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद नवजात को रहबर आलम को ही सौंप दिया। इमरजेंसी पर्ची पर रहबर के हस्ताक्षर करवा कर बच्चे को उनकी जिम्मेदारी में दे दिया गया, जबकि ऐसी स्थिति में नवजात को बाल कल्याण समिति की अभिरक्षा में भेजा जाना चाहिए था।
प्रशासनिक प्रक्रिया की इस अवहेलना को लेकर अब कई सवाल उठ रहे हैं।

बाल कल्याण समिति हुई सक्रिय
बाल कल्याण समिति (CWC) की अध्यक्ष रिंकू वर्मा ने शनिवार को इस मामले में औपचारिक रूप से संज्ञान लिया। उन्होंने सदर अस्पताल प्रबंधक से कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे हैं—
- नवजात किस समय अस्पताल लाया गया?
- किसके आदेश पर उसे बेहतर इलाज के लिए बाहर भेजा गया?
- शिशु को मछुआरे को क्यों सौंपा गया?
- अब तक इस मामले में क्या कार्रवाई की गई?
समिति का कहना है कि नवजात शिशुओं की सुरक्षा से जुड़े नियम बेहद स्पष्ट हैं, और इस मामले में प्रक्रियागत त्रुटियाँ सामने आ रही हैं।
नवजात का उपचार और देखभाल
रहबर आलम के अनुसार, नवजात को पहले पूर्णिया में इलाज के लिए ले जाया गया था। बाद में CWC की पहल पर बच्चे को वापस अररिया के सदर अस्पताल लाया गया और उसे एसएनसीयू (SNCU) वार्ड में भर्ती कराया गया।
अस्पताल में नवजात की देखभाल के लिए तीन केयरटेकर—गौरी कुमारी, पूनम कुमारी और रूली कुमारी—को विशेष रूप से नियुक्त किया गया है।
प्रशासनिक लापरवाही की जांच होगी
पूरा मामला अब जांच के दायरे में है। यह सवाल गंभीरता से उठ रहा है कि अस्पताल और पुलिस ने नवजात को CWC के हवाले करने की बजाय सीधे एक मछुआरे को क्यों सौंप दिया।
बाल संरक्षण कानून के तहत यह प्रक्रिया गलत मानी जाती है, और समिति इस पर कड़ी कार्रवाई कर सकती है।
स्थानीय स्तर पर चर्चा
यह मामला स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों का कहना है कि मछुआरे रहबर आलम की सतर्कता और मानवीयता ने नवजात की जान बचाई, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही ने मामले को चिंताजनक बना दिया।
फिलहाल जिला प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन और CWC से मिली जानकारी के आधार पर इस घटना की व्यापक जांच की तैयारी की जा रही है।
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