किशनगंज (बिहार):
जनसुराज पार्टी के सूत्रधार और रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर रविवार को किशनगंज के अंजुमन इस्लामिया प्रांगण में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में पहुंचे, जहाँ उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं द्वारा भव्य स्वागत दिया गया। यह सभा खास तौर पर सीमांचल के मुस्लिम समाज को ध्यान में रखकर आयोजित की गई थी, लेकिन कार्यक्रम के दौरान कई घटनाएं ऐसी हुईं, जिससे आयोजन पर सवाल खड़े हो गए हैं।

मुस्लिम समुदाय को रिझाने की रणनीति
कार्यक्रम में मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के उद्देश्य से उलेमाओं और समाज के प्रभावशाली लोगों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। इस दौरान प्रशांत किशोर ने मंच से धर्म और पैगम्बर मोहम्मद साहब का हवाला देते हुए मुस्लिम समुदाय से अपने आंदोलन ‘जनसुराज’ से जुड़ने की अपील की।
सभा में मौजूद लोगों को एक विशेष तरह की टोपी भी बांटी गई, जिसे प्रतीकात्मक रूप से मुस्लिम पहचान से जोड़ा गया। इसे लेकर कई लोगों ने सवाल उठाए कि क्या यह टोपी वितरण एक समुदाय विशेष को राजनीतिक रूप से साधने का प्रयास था।

नाश्ते के दौरान अव्यवस्था और धक्का-मुक्की
कार्यक्रम में आने वाले लोगों के लिए नाश्ता और पानी की व्यवस्था की गई थी, लेकिन वितरण के दौरान भारी अव्यवस्था देखने को मिली। नाश्ते के लिए लगी भीड़ में लोग एक-दूसरे को धक्का देते नजर आए। भोजन स्थल पर कोई समुचित व्यवस्था नहीं थी, जिससे अफरातफरी का माहौल बन गया।

“500 रुपए और खाना देने” का वादा—पूरा नहीं हुआ, लोगों में नाराज़गी
सभा में आए कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि उन्हें कार्यक्रम में बुलाने के लिए यह कहा गया था कि 500 रुपए और खाना दिया जाएगा, लेकिन न तो उन्हें पैसे मिले और न ही वादा किया गया खाना। इससे वे लोग कार्यक्रम के अंत में आक्रोशित दिखाई दिए। कई लोग कैमरे के सामने खुलकर बोले कि “हमें बहलाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन सीमांचल का मुसलमान अब समझदार हो चुका है।”

“टोपी बांटकर सियासत की वैतरणी पार नहीं कर पाएंगे किशोर”
सभा के बाद कुछ स्थानीय लोगों और धार्मिक नेताओं ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केवल टोपी बांटकर या धार्मिक प्रतीकों का उपयोग करके कोई भी नेता मुस्लिम समुदाय का भरोसा नहीं जीत सकता। एक स्थानीय युवक ने कहा, “सीमांचल का मुसलमान किसी के झांसे में नहीं आने वाला। टोपी पहनाने से इज्जत नहीं मिलती, भरोसे से मिलती है।”
राजनीतिक विश्लेषण
प्रशांत किशोर लंबे समय से बिहार के विभिन्न हिस्सों में ‘बदलाव यात्रा’ के जरिए जनसंपर्क कर रहे हैं। किशनगंज जैसे मुस्लिम बहुल इलाके में इस तरह की सभा उनके मिशन का अहम हिस्सा माना जा रहा था। लेकिन कार्यक्रम के दौरान उठे विवादों से साफ है कि जनभावना को साधने की उनकी रणनीति को स्थानीय स्तर पर चुनौती मिल रही है।
निष्कर्ष
इस कार्यक्रम से स्पष्ट होता है कि सीमांचल जैसे संवेदनशील क्षेत्र में केवल सांकेतिक gestures या वादों से वोटरों को प्रभावित करना आसान नहीं है। मुस्लिम समाज के भीतर राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है, और अब वे सिर्फ धार्मिक प्रतीकों से नहीं, बल्कि वास्तविक नीतियों और भरोसे से अपने नेताओं का चुनाव करना चाहते हैं।
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