पूर्णिया जिले के कस्बा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत लखना पंचायत में ग्रामीणों का सब्र आखिरकार जवाब दे गया। भेभरा चौक से मजगामा पश्चिम टोला तक करीब 2 किलोमीटर लंबी प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY) की सड़क की बदहाल स्थिति को लेकर ग्रामीणों ने सोमवार को अनोखे अंदाज़ में विरोध प्रदर्शन किया। गड्ढों और कीचड़ से भरी सड़क पर ग्रामीणों ने धान की रोपाई कर प्रशासन की उदासीनता के खिलाफ नाराजगी जताई।

20 वर्षों से नहीं हुई मरम्मत, हर बरसात में होती हैं दुर्घटनाएं
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस सड़क की हालत पिछले दो दशकों से जर्जर है। सड़क पर कहीं भी पक्की सतह दिखाई नहीं देती। बरसात के मौसम में हालात और भी खराब हो जाते हैं—सड़क जलमग्न हो जाती है, और लोगों को कीचड़ में चलना पड़ता है। आए दिन छोटे बच्चों, बुजुर्गों और दुपहिया वाहन चालकों के गिरने की घटनाएं होती रहती हैं।

प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक सबको सुनाया गया दुख, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई
प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार सांसद, विधायक, बीडीओ और अन्य अधिकारियों से इस सड़क की मरम्मत के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला। ग्रामीणों का कहना है कि “विकास” केवल कागज़ों पर दिखाया जा रहा है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है।

अनोखा विरोध बना सुर्खी, रोड पर धान रोपाई
गांव वालों ने अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए सड़क पर धान की रोपाई शुरू कर दी। कीचड़ और पानी से भरी सड़क पर बैठकर किसानों की तरह खेत की तरह धान बोना प्रशासन के लिए एक स्पष्ट संदेश था कि अगर सड़क खेत जैसी ही है, तो उसका उपयोग वैसा ही किया जाएगा।

आगामी चुनाव में बहिष्कार की चेतावनी
प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों ने स्पष्ट चेतावनी दी—
“अगर सड़क नहीं बनी, तो इस बार वोट भी नहीं देंगे।”
उन्होंने कहा कि अगला चुनाव “रोड नहीं तो वोट नहीं” के नारे के साथ बहिष्कृत किया जाएगा। ग्रामीणों ने इसे अपनी आत्मसम्मान की लड़ाई बताया और कहा कि अब केवल वादा नहीं, जमीन पर काम चाहिए।
प्रदर्शन में स्थानीय जनप्रतिनिधि भी शामिल
विरोध प्रदर्शन में पंचायत के मुखिया मोहम्मद अनवर, समिति सदस्य अशरफ, और बड़ी संख्या में पुरुषों व महिलाओं ने हिस्सा लिया। ग्रामीणों का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ एक सड़क की मरम्मत के लिए नहीं, बल्कि सरकार की जवाबदेही तय करने की दिशा में एक कदम है।
निष्कर्ष
कस्बा प्रखंड की यह घटना एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि क्या देश की विकास योजनाएं सही तरीके से अंतिम व्यक्ति तक पहुंच रही हैं? जब लोग खेत छोड़ सड़क पर धान लगाने लगें, तो यह संकेत है कि संवेदनशीलता और शासन की प्राथमिकताओं की समीक्षा जरूरी हो गई है।
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