किशनगंज (बिहार): लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारियां पूरे जोरों पर हैं और इसके साथ ही किशनगंज में बांस की टोकरियों की मांग में जबरदस्त इजाफा देखा जा रहा है। शहर के खगड़ा स्टेडियम रोड स्थित बांस कारीगरों की बस्ती में इस समय 500 से अधिक कारीगर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं ताकि पूजा के पहले तक लाखों की संख्या में टोकरियां तैयार की जा सकें।
इन बांस की टोकरियों का उपयोग मुख्य रूप से छठ पूजा के दौरान सूर्य भगवान को अर्घ्य देने और पूजा सामग्री को सजाकर घाट तक ले जाने के लिए किया जाता है।

स्थानीय से वैश्विक स्तर तक पहुंची मांग
बांस की इन पारंपरिक टोकरियों की मांग केवल बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे छठ मनाने वाले राज्यों तक सीमित नहीं रही। आज यह किशनगंज की टोकरियां दिल्ली, पश्चिम बंगाल से लेकर अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और मॉरीशस जैसे देशों तक पहुंच रही हैं।
स्थानीय कारीगर संजय महतो का कहना है, “हर साल छठ पूजा के समय टोकरी की मांग दोगुनी हो जाती है। लोग पहले से ही ऑर्डर देने लगते हैं। यह परंपरा हमारे लिए केवल धर्म से नहीं जुड़ी, बल्कि रोज़गार से भी जुड़ी हुई है।”
वहीं कारीगर रामू महतो ने बताया, “हम दुर्गा पूजा के तुरंत बाद से काम में लग जाते हैं। सुबह से देर रात तक टोकरियां बनाते हैं। छठ का समय हमारे लिए कमाई का सबसे अहम अवसर होता है।”

हर दिन तैयार हो रही 5,000 से अधिक टोकरियां
कारीगर रात्न महतो के अनुसार, एक कुशल कारीगर रोजाना 10 से 15 टोकरियां बना लेता है। एक बांस से करीब तीन टोकरियां बन जाती हैं। इस क्षेत्र में फिलहाल प्रतिदिन 5,000 से अधिक टोकरियां तैयार की जा रही हैं। अनुमान है कि छठ पर्व तक लगभग 10 लाख टोकरियां तैयार हो जाएंगी।

कीमतों में 20 रुपये तक की बढ़ोतरी
इस साल टोकरी की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले साल जहां छोटी टोकरियां 80 रुपए और बड़ी टोकरियां 100 रुपए में मिलती थीं, वहीं इस वर्ष इनकी कीमतें बढ़कर 120 रुपए (छोटी) और 140 रुपए (बड़ी) हो गई हैं। कारीगरों और व्यापारियों के अनुसार, बांस की कमी और परिवहन लागत में वृद्धि इस मूल्य वृद्धि के प्रमुख कारण हैं।
थोक व्यापारी भी किशनगंज पर निर्भर
पटना के एक थोक व्यापारी ने जानकारी दी, “हम हर साल किशनगंज से बड़ी मात्रा में टोकरियां खरीदते हैं। यहां की कारीगरी, मजबूती और डिज़ाइन की देशभर में डिमांड है। हम इन्हें दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ जैसे बड़े शहरों में भेजते हैं, जहां से फिर ये विदेशों तक जाती हैं।”
किशनगंज को मिल रही वैश्विक पहचान
बांस की टोकरियों का यह कारोबार स्थानीय कारीगरों के लिए आजीविका का मजबूत आधार बन चुका है। साथ ही, यह किशनगंज जिले को एक विशिष्ट सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान भी दिला रहा है। छठ पूजा के इस अवसर पर इन टोकरियों के माध्यम से न केवल पारंपरिक कला जीवित रह रही है, बल्कि सैकड़ों परिवारों की आर्थिक समृद्धि का रास्ता भी खुल रहा है।
संस्कृति और कारोबार का संगम
किशनगंज की बांस टोकरी अब केवल एक पूजा का साधन नहीं रही, यह जिले की सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक विकास का प्रतीक बन चुकी है। हर साल छठ जैसे पर्व पर इन कारीगरों की मेहनत यह साबित करती है कि परंपरा और नवाचार का मेल किस तरह एक छोटे से शहर को भी वैश्विक मंच तक पहुंचा सकता है।
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