किशनगंज।
मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज हो गई है और अब बिहार के सीमावर्ती जिले किशनगंज में भी राजनीतिक हलचल बढ़ती नजर आ रही है। भाजपा में इस सीट को लेकर आंतरिक असंतोष सामने आने लगा है।
भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष टीटू बदवाल ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि यदि पार्टी किशनगंज विधानसभा सीट से किसी बाहरी चेहरे को टिकट देती है, तो वे निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे।
BJP में टिकट बंटवारे से पहले सियासी तापमान चरम पर
“मुझे टिकट न मिले, कोई बात नहीं… लेकिन बाहरी नहीं चाहिए”
टीटू बदवाल ने साफ तौर पर कहा है कि उनका उद्देश्य स्वयं टिकट पाना नहीं, बल्कि स्थानीय कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की रक्षा करना है।
“अगर पार्टी मुझे टिकट नहीं देती, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन अगर किसी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया गया, तो मैं चुप नहीं बैठूंगा। मैं निर्दलीय चुनाव लड़ने को तैयार हूं।”
उनका यह बयान सीधे तौर पर भाजपा के अंदर चल रही उठापटक और संभावित टिकट दावेदारों को लेकर गहराए विवाद की ओर इशारा करता है।
BJP में टिकट बंटवारे से पहले सियासी तापमान चरम पर
शाहनवाज हुसैन के नाम को लेकर अटकलें तेज
बदवाल का बयान तब आया है, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन को किशनगंज सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चाएं तेज हैं। शाहनवाज हुसैन का नाम राष्ट्रीय स्तर पर जाना-पहचाना है, लेकिन स्थानीय स्तर पर उन्हें बाहरी माना जा रहा है।
ऐसे में बदवाल के बयान को पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति और शाहनवाज हुसैन की दावेदारी को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
BJP में टिकट बंटवारे से पहले सियासी तापमान चरम पर
BJP की ओर से अब तक कोई आधिकारिक ऐलान नहीं
अब तक भाजपा ने किशनगंज विधानसभा सीट सहित राज्य की किसी भी सीट पर उम्मीदवारों के नाम की आधिकारिक घोषणा नहीं की है। लेकिन टिकट बंटवारे से पहले ही सामने आए इस विरोध ने पार्टी के लिए रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
किशनगंज जिले की राजनीति में टीटू बदवाल एक स्थानीय और सक्रिय चेहरा हैं, और उनका यह कदम पार्टी के भीतर कई समीकरण बदल सकता है।
BJP में टिकट बंटवारे से पहले सियासी तापमान चरम पर
भविष्य के संकेत और संभावित असर
बदवाल की इस घोषणा से यह संकेत मिल रहे हैं कि अगर पार्टी स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी करती है, तो आंतरिक बगावत और वोटों का बिखराव भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। किशनगंज जैसी सीट, जहां भाजपा पहले से ही अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी है, वहां इस प्रकार का विभाजन पार्टी की रणनीति पर भारी पड़ सकता है।
निष्कर्ष
टीटू बदवाल का बयान सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि पार्टी में स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार की बहस को उजागर करता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा नेतृत्व इस स्थिति को कैसे संभालता है — क्या बदवाल को मनाया जाएगा या पार्टी किसी अन्य रणनीति के तहत अपना प्रत्याशी घोषित करेगी। साथ ही यह भी देखने लायक होगा कि बदवाल अपनी बात पर अडिग रहते हैं या नहीं।