किशनगंज (बिहार):
किशनगंज सदर अस्पताल में तैनात 102 एम्बुलेंस चालकों और आपातकालीन चिकित्सा तकनीशियनों (EMT) की हड़ताल आज नौवें दिन भी जारी रही। वेतन वृद्धि और कार्य स्थितियों में सुधार की मांग को लेकर चल रहे इस आंदोलन ने अब विकराल रूप ले लिया है, जिससे जिले की जनता, खासकर गरीब मरीज, बुरी तरह प्रभावित हो रही है।

महंगाई के दौर में ₹8,200 की नौकरी
हड़ताल पर बैठे कर्मियों का कहना है कि उन्हें प्रति माह मात्र ₹8,200 का मानदेय मिलता है, जो जैन प्लस नामक संविदा कंपनी द्वारा दिया जाता है। कर्मियों ने इसे “आर्थिक शोषण” करार देते हुए कहा कि इस वेतन में परिवार चलाना, बच्चों की शिक्षा, और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना असंभव हो गया है।
एक एम्बुलेंस चालक ने कहा,
“हम दिन-रात जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा करते हैं, लेकिन बदले में जो मानदेय मिलता है, उससे दो वक़्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब होती है।”

धमकी और दबाव, फिर भी डटे कर्मी
हड़ताल पर डटे कर्मियों ने आरोप लगाया कि जैन प्लस कंपनी की ओर से नौकरी से निकालने की धमकी दी जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगों पर सकारात्मक कार्रवाई नहीं होती, तब तक वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे।

मरीजों की बढ़ी परेशानी
इस हड़ताल का सबसे बुरा असर उन मरीजों पर पड़ रहा है जो सरकारी एम्बुलेंस सेवा पर निर्भर हैं। सदर अस्पताल में एम्बुलेंस सेवाएं पूरी तरह ठप हो चुकी हैं, जिससे गंभीर मरीजों को इलाज के लिए प्राइवेट एम्बुलेंस, टैक्सी, या ई-रिक्शा का सहारा लेना पड़ रहा है।
इन विकल्पों के लिए ₹500 से ₹1000 तक का खर्च करना पड़ रहा है, जो गरीब मरीजों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बन गया है।
एक बुजुर्ग मरीज के परिजन ने बताया,
“हम गांव से आए हैं। सरकारी एम्बुलेंस नहीं मिली तो 800 रुपये में प्राइवेट वाहन से लाना पड़ा। इलाज से पहले ही जेब खाली हो गई है।”
प्रशासन मौन, समाधान अधर में
अब तक जिला प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई या वार्ता की पहल नहीं हुई है। इससे नाराज कर्मियों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो वे जिला मुख्यालय पर बड़ा प्रदर्शन करेंगे।

जनहित में अपील
एम्बुलेंस कर्मियों ने सरकार और स्वास्थ्य विभाग से मानवता के आधार पर उनकी मांगों को समझने और स्थायी समाधान निकालने की अपील की है। उनका कहना है कि वे आम जनता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन अपमानजनक वेतन और शोषण के साथ काम करना अब संभव नहीं।
निष्कर्ष:
एक तरफ जहां सरकार “स्वास्थ्य सेवा सुधार” और “आयुष्मान भारत” जैसी योजनाओं की बात करती है, वहीं दूसरी ओर, जमीनी स्तर पर सेवाएं देने वाले कर्मचारी वेतन और सम्मान के लिए सड़कों पर हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा कब तक संविदा व्यवस्था के भरोसे रहेगा?
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