जिले के बहादुरगंज प्रखंड अंतर्गत मदरसा इमदादिया कुम्हार टोली (मदरसा संख्या 501) में प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। मदरसा की कमेटी के गठन को लेकर दो पक्ष आमने-सामने हैं। इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) नसीर हुसैन बुधवार को स्वयं मदरसा परिसर पहुंचे और दोनों पक्षों से तथ्यात्मक जानकारी ली।

पुरानी कमेटी को भारी समर्थन
मिली जानकारी के अनुसार, मदरसा में पूर्व से कार्यरत पुरानी कमेटी लंबे समय से सुचारू रूप से कार्य कर रही थी और स्थानीय लोगों के अनुसार, शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में इसकी बड़ी भूमिका रही है। अचानक एक नई कमेटी का गठन कर दिया गया, जिसके बाद इसकी वैधता पर सवाल उठने लगे।
जांच के दौरान जिला शिक्षा पदाधिकारी ने दोनों पक्षों से हस्ताक्षरित समर्थन पत्र प्रस्तुत करने को कहा।
- पुरानी कमेटी के पक्ष में 173 से अधिक लोगों के हस्ताक्षरित समर्थन पत्र प्रस्तुत किए गए।
- वहीं नई कमेटी के पक्ष में मात्र 63 हस्ताक्षर ही सामने आए।
प्रधान मौलवी और शिक्षकों का भी समर्थन पुरानी कमेटी को
सबसे अहम बात यह रही कि पुरानी कमेटी के समर्थन में मदरसा के प्रधान मौलवी और नामित वरीय शिक्षक का भी हस्ताक्षर मौजूद था, जो एक प्रकार से संस्थागत समर्थन को दर्शाता है। इसके विपरीत नई कमेटी के दस्तावेजों पर न तो मौलवी का हस्ताक्षर था और न ही किसी वरिष्ठ शिक्षक का, जिसे जांच अधिकारी ने गंभीरता से लिया।

जमीन दानकर्ता परिवार की भी आपत्ति
मदरसा की जमीन दान करने वाले परिवार की एक महिला सदस्य ने भी खुलकर नई कमेटी के खिलाफ अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “मेरे पिताजी ने इस मदरसे के लिए जमीन दान दी थी, लेकिन आज उसी मदरसे की नई कमेटी का सचिव एक अंगूठा छाप व्यक्ति है।”
इस बयान के बाद स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने भी एकजुट होकर नई कमेटी पर सवाल उठाए और कहा कि बिना जनसमर्थन और वैध प्रक्रिया के गठित यह कमेटी स्वीकार्य नहीं है।

पूर्व में भी उठ चुका है विवाद
गौरतलब है कि इससे पहले भी ऐसा ही विवाद सामने आया था, जिसमें जनप्रतिनिधियों, ग्राम सरपंच प्रतिनिधियों और अन्य सामाजिक गणमान्य लोगों ने पुरानी कमेटी के पक्ष में अपनी राय रखी थी। उस समय भी जनसमर्थन पुरानी कमेटी के साथ ही रहा था।
शिक्षा पदाधिकारी ने दिया आश्वासन
मौके पर मौजूद जिला शिक्षा पदाधिकारी नसीर हुसैन ने कहा,
“मामले की गहराई से जांच की जा रही है। सभी दस्तावेज और जनसमर्थन को ध्यान में रखते हुए नियमानुसार उचित कार्रवाई की जाएगी।”

ग्रामीणों की मांग
स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि पुरानी कमेटी को ही मान्यता दी जाए, क्योंकि वही शिक्षा व्यवस्था को सही ढंग से चला रही है और जनविश्वास भी उसी पर कायम है।
निष्कर्ष:
यह विवाद न केवल एक शैक्षणिक संस्थान की आंतरिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह स्थानीय जनता के विश्वास, सामाजिक सहभागिता और पारदर्शिता के मुद्दों को भी सामने लाता है। आने वाले दिनों में प्रशासनिक निर्णय यह तय करेगा कि इस मुद्दे का समाधान लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप होता है या नहीं।
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